नागार्जुन का जीवन परिचय
नागार्जुन का जीवन परिचय – बाबा नागार्जुन के जन्म के सन्दर्भ में विभिन्न भ्रान्तियाँ विद्यमान हैं | किन्तु पूर्ण रूपेण स्वीकृत किया गया है कि नागार्जुन का जन्म 11 जून सन् 1911 ज्येष्ठ मास को उनके ननिहाल ‘सतलखा’ गाँव जिला मधुबनी में हुआ था। बचपन में ही चार पुत्रों के काल कवलित हो जाने के बाद उनके पिता ने रावणेश्वर वैद्यनाथ (महादेव) से संतान की याचना की थी, अतः उनका जन्म नाम ‘वैद्यनाथ’ मिश्र रखा गया जो लगभग 25 वर्षों तक किसी न किसी रूप में उनसे जुड़ा रहा | आज हम बाबा नागार्जुन का जीवन परिचय से परचित होंगे और जानेंगे उनके व्यक्तित्व के सम्बंध में।
नागार्जुन का व्यक्तित्व
बाबा नागार्जुन ने स्वेच्छापूर्वक ‘यात्री’ नाम का चयन अपनी मैथिली रचनाओं के लिए किया था। इसी ‘यात्री’ उपनाम का प्रयोग सन् 1942-43 तक अपनी हिन्दी रचनाओं के लिए भी किया। अपने श्रीलंकायी प्रवास में बौद्ध धर्मांवलंबी होने के पश्चात् सन् 1936-37 में उनका ‘नागार्जुन’ नामकरण हुआ। सोच और स्वभाव से कबीर एवं देश-दुनिया के खट्टे – मीठे अनुभवों को बटोरने वाले यायावर की तरह जीवन-यापन करने वाले बाबा बैद्यनाथ मिश्र मैथिली में ‘यात्री’, हिन्दी में ‘नागार्जुन’ के अलावा साहित्य में अन्य नामों से भी जाने जाते है। जैसे संस्कृत में ‘चाणक्य’, लेखकों, मित्रों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं में ‘नागाबाबा’।
सोच और स्वभाव से कबीर एवं देश-दुनिया के खट्टे – मीठे अनुभवों को बटोरने वाले यायावर की तरह जीवन-यापन करने वाले बाबा बैद्यनाथ मिश्र मैथिली में ‘यात्री’, हिन्दी में ‘नागार्जुन’ के अलावा साहित्य में अन्य नामों से भी जाने जाते है। जैसे संस्कृत में ‘चाणक्य’, लेखकों, मित्रों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं में ‘नागाबाबा’।
पारिवारिक जीवन
नागार्जुन के पिता का नाम गोकुल मिश्र तथा माता का नाम श्रीमती उमादेवी था। उनकी माता सरल ह्य्दय, परिश्रमी एवं दृढ़ चरित्र महिला थी। दुर्भाग्य से चार वर्ष की अवस्था में ही बालक वैद्यनाथ को माता उमादेवी के स्नेहांचल से वंचित होना पड़ा। इनके पिता गरीब तो थे ही, पर स्वभाव से भी अक्कड़ और और कठोर थे। सन् 1943 के सितम्बर मास में काशी के गंगा किनारे मणिकर्णिका घाट पर उनका देहान्त हुआ। बचपन में ही कथाकार के बाल मन पर पहली छाप माँ और विधवा चाची के पीड़ा भरे जीवन की थी। एक अशिक्षित, मैथिली ब्राह्मण परिवार में नारी का वैधव्य कितना अपमानित होता है, उसकी प्रतीति उनके उपन्यासों के द्वारा होती है। बाबा नागार्जुन का उनके घर के प्रति उदासीनता का मूल कारण उनके पिता का माँ उमादेवी के प्रति कठोर व्यवहार था।
वैवाहिक जीवन
नागार्जुन का विवाह सन् १९३१ में हीरपुर बवशी टोेल के निवासी कृष्णकांत झा की पुत्री अपराजिता देवी के साथ हुआ।
साहित्यिक परिचय
नागार्जुन हिंदी और साहित्य के अप्रतिम लेखक और कवि थे। हिंदी साहित्य में उन्होंने ‘नागार्जुन’ तथा मैथिली में ‘यात्री’ उपनाम से रचनाएँ की। नागार्जुन ने जीवन के कठोर यथार्थ एवं कल्पना पर आधारित अनेक रचनाओं का सृजन किया। अभावों में जीवन व्यतीत करने के कारण इनके हृदय में समाज के पीड़ित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव विद्यमान था। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का शोषण करने वाले व्यक्तियों के प्रति इनका मन विद्रोह की भावना से भर उठता था।
शताब्दी स्मृति स्तम्भ | Shatabdi Smriti Stambha